POEM DEDICATED TO WOMEN STILL STRUGGLING TO COME OUT OF THEIR SHELLS.....
खुद को खोज रही है जो ....आज की औरत हूँ मैं
ना तेरे
हाथ, ना
तेरे साथ,
ना तेरी
कठपुतली हू
मैं ....
ना बंधन
कोई... ना
अंध विश्वास
...
ना नफरत
की इजाजत
है .....
ना सुनेगी
... ना साहुगी चुपचाप
संगर्ष की
आग मुझ
में भी है......
मौन हूँ,
पर बोल
भी शक्ति
हूँ मैं
में बंधन को
जोडना भी
जानू ....
मोद आये
तोढना भीना
जानू ....
आपनी ताकात
खूद हूं...
मैं
आप अपनी सच्चाई
बनूंगी ...
.......मैं ही दुर्गा,
मैं ही
काली... मैं
चंडिका भी
हूं
मैं सत्य,
सीख और
ज्ञान हूं ..
शिक्षक, दोस्त,
मार्गदर्शक भी
हूं
सीखना भी
चाहूं सिखा भी
सकती हूं...
मैं
खुद संघर्ष
की कहानी
हूं
....मैं ही
दुर्गा... मैं ही
काली... मैं सरस्वती भी
हूं
खुले आसमान
में उड़ना हैं
मुझे .....
कौन हू
मैं, खुद
से पूछना हैं
मुझे
हर लकीर
में नयी
कहानी लिखनी
हैं मुझे
कुछ सपने
बाकी हैं
जो पूरा
करने हैं
मुझे
माँ, बेटी,
पत्नी, सब
हूँ मैं
... हर कर्तव्य निभाऊंगी
....
परं फिर
भी, कभी
कभी... खुद
से मिलना
जाया करूंगी
मैं ही
आप शक्ति
बनूंगी
मैं ही
दुर्गा... मैं ही
काली... मैं भवानी
भी हूं
खुद को
खोज रही
है जो
मैं वोह
नाई कहनी
हूँ